इण्डो - ग्रीक शासक

 

इण्डो - ग्रीक शासक ( लगभग 200 ईसा पूर्व से 10 ईस्वी तक)

सेल्युकस द्वारा स्थापित पश्चिम तथा मध्य एशिया का विशाल साम्राज्य ‘‘ एण्टिओकस द्वितीय ’’  के समय कई भागों में स्वतंत्र हो गया था। जिनमें बैक्टिया और पर्थिया प्रमुख स्वतंत्र प्रांत थे। ई0पू0 250 के लगभग विद्रोह करके ‘‘डियोडोट्स प्रथम ’’  बैक्टिया का शासक बना। ई0पू0 208 के लगभग इस नव स्थापित ‘‘ इण्डो - ग्रीक ’’ वंश को एण्टिओकस तृतीय ने मान्यता दे दी। इसमें द्वितीय शासक ‘‘डियोडोट्स द्वितीय ’’ के उपरांत यूथीडेमस ने इसकी हत्या कर दी और स्वयं सत्तारूढ़ हो गया। यूथीडेमस का पुत्र डेमेटियस प्रथम (ई0पू0 189 से ई0पू0 171) बना जिसका विवाह एण्टिओकस तृतीय की पुत्री से हुआ था।

डेमेटियस प्रथम : ई0पू0 190 लगभग यह अपने वंश के ही दो सेनापतियों के साथ (1. अपोलोडोट्स 2. मिनेण्डर) भारत पर अपना आक्रमण किया। इसके पूर्व संभवतः एण्टिओकस तृतीय ने भी काबुल घाटी के राजा सुभगसेन को पराजित कर अपना आधिपत्य स्वीकार करा लिया तथा भेंट स्वरूप हाथी प्राप्त किए। डेमेटियस जिसे महाभारत में दत्तमित्र कहा गया है, ने वृहद्रथ मौर्य से पश्चिमोत्तर प्रांत विजित कर यूनानी राज्य की स्थापना की तथा साकल को अपनी राजधानी बनाई। महाभाष्य के अनुसार यह लड़ते हुए साकेत (अवध) तथा माध्यमिका (चित्तौड़) तक आया।

जब डेमेटियस भारत विजय में व्यस्त था। बैक्टिया के गृहराज्य में युक्रेटाइडस ने विद्रोह कर सिंहासन जीत लिया तथा डेमेटियस से झेलम नदी तक पश्चिम पंजाब भी छीन लिया। यूनानियों के इस आपसी झगड़े के कारण ही पुष्यमित्र शुंग ने सिंधु तट तक इन्हें रोकने में सफलता मिली। इस तरह गांधार की युक्रेटाइडस द्वारा विजयोपरांत भारत में यवन साम्राज्य दो भागों में बंट गया। प्रथम डेमेटियस की राजधानी साकल तथा युक्रेटाइडस की हत्या पुत्र हेलियोक्लीज ने की। कालान्तर में बैक्टिया को शकों ने जीत लिया।

डेमेटियस प्रथम को स्टेबो एवं जस्टिन ने ‘‘ भारत का राजा ’’ कहा है। डेमेटियस प्रथम के पश्चिम पंजाब से प्राप्त सिक्कों पर यूनानी व खरोष्ठी लिपि अंकित है।

अपोलोडोट्स : संभवतः इसने काठियावाड़ प्राय द्वीप को जीत लिया था।

डेमेटियस द्वितीय : इसने पष्चिमोत्तर भारत में ईण्डो - ग्रीक सत्ता की स्थापना की।

मिनेण्डर :(ई0पू0 115 से ई0पू0 90) यह सर्वाधिक महान यवन शासक था। जिसे बौद्ध साहित्य में मिलिन्द कहा गया है। गार्गी संहिता के अनुसार इसकी सेना साकेत, पांचाल, मथुरा विजित करते हुए पाटलिपुत्र तक आई थी। इसका समर्थन इलाहाबाद  के निकट ‘रेह ’ से प्राप्त मिनेण्डर का लेख भी करता है। यह एक विशाल साम्राज्य पर राजधानी ‘‘ शाकल ’’ से शासन करता था। काबुल, बुंदेलखण्ड तथा मथुरा से प्राप्त इसके सिक्कों पर धर्म चक्र, हाथी एवं धमिकस शब्द अंकित है , जो इसे धर्मनिष्ठ शासक सिद्ध करते हैं। पालि भाषा में रचित महायान समर्थित बौद्ध ग्रंथ ‘‘ मिलिन्दपन्हो ’’ मिनेण्डर और बौद्ध भिक्षु नागसेन की दार्शनिक वार्तालाप पर आधरित है। यह प्रथम यवन शासक था , जिसने बौद्ध धर्म को अपनाया था। मिनेण्डर की मृत्योपरांत उसका दाह संस्कार किया गया था। प्लुटार्क के अनुसार दसके अस्थि अवशेषों को लेकर भिक्षुओं में झगड़ा हुआ अन्त में अवषेषों को सभी नगरों में बांट दिया गया तथा उन पर स्तूप का निर्माण कराया गया।

मिनेण्डर के उत्तराधिकारी ‘‘ स्टेटो प्रथम ’’ व ‘‘ स्टेटो द्वितीय ’’ थे। इनका अंत शकों ने अंतिम रूप से ई0पू0 30 तक कर दिया।

दूसरी ओर तक्षशिला के यवनों में हेलियाक्लीज के बाद एण्टियालकीड्स शासक बना। जिसने अपना राजदूत हेलियोडोरस को सातवाहन शासक/शुंग शासक काशीपुत्र भागभद्र के विदिशा स्थित दरबार में भेजा। अगला शासक लिसियस के पश्चात इस वंश का अंतिम शासक हर्मियस बना। जिसे हटा कर कुषाण नेता कुजुल कैडफिसिस शासक बना।

स्मरणीय तथ्य :

  ‘‘ गंगा घाटी क्षेत्र ’’ को विजित करने का मिनेण्डर का स्वप्न कभी पूर्ण नहीं हो सका।

 मिनेण्डर का उल्लेख ‘‘ अवदान कल्पलता ’’ (क्षेमेन्द्र ) से भी प्राप्त होता है।

 मिनेण्डर का जन्म अलसंद द्वीप (काबुल) के निकट कालसीग्राम में हुआ था।

 के0एम0 पणिक्कर यवनों द्वारा भारतीय संस्कृति के आत्मसाती करण के कारण इन्हें विदेशी आकंमण न मान कर भारत में प्रवेश मानते हैं।

 यूनानी कला हेलेनिस्टिक कला कहलाई जिसका सर्वोत्तम उदाहरण गांधार कला है।

 यूनानी संपर्कके पूर्व भारत में आहत मुद्रा का प्रचलन था। सर्वप्रथम इण्डो-ग्रीक शासकों ने ही भारत में सोने के सिक्के जारी किए, जो लेख युक्त एवं राजा व देवता के चित्रों से अंकित होते थे। सिक्को के लिए प्रयुक्त ग्रीक शब्द द्रख्य कालांतर में द्रम्म तथा दाम हो गया। सांचे में ढली मुद्रा के निर्माण की विधि भारतीयों इण्डो - ग्रीक शासकों से सीखी।

 यूनानी पोलस के सिद्धांत के आधार पर भारतीय त्रिकोणमिति का विकास हुआ।

 इण्डो - ग्रीक शासन का सर्वाधिक प्रभाव ज्योतिष शास्त्र पर पड़ा। वराहमिहिर के होड़ा शास्त्र पर यवन खगोल शास्त्र की परछाई परिलक्षित होती है।

 संस्कृत नाटकों में पर्दे हेतु प्रयुक्त शब्द यवनिका यूनान से ही लिया गया है। जबकि यवन अपने देश को हेलास तथा स्वयं को हेलेनिज कहते थे।

 शासकों को भारतीय ग्रन्थ सर्वज्ञ यवन कहते हैं।

 मिनेण्डर की मृत्योपरांत उसे जलाए जाने पर भस्म हेतु प्रतिस्पर्धा हुई थी।

 यूथीडेमस के पुत्र डेमेटियस ने सेल्युसिड राजा को हराया।

 मिनेण्डर का अधूरा ख्वाब - गंगा घाटी की विजय।

 हेलियाडोरस ने बेसनगर में बनवाए स्तम्भ में स्वयं को वासुदेव कहा है।

 

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